वो तो किसी को ढूंढ रहे हैं…

वो तो किसी को ढूंढ रहे हैं, और हम यहां बैठे हैं उन्हें देख रहे हैं, नज़र कभी तो इस ओर होगी, रोज़ उम्मीदें यूं कर रहे हैं, मगर उनकी नजरें मसरूफ़ हैं, वो तो किसी को ढूंढ रहे हैं, किसे उन्हें भी पता नहीं, हम बस यहां बैठे उन्हें देख रहे हैं… – वैदिका…

सब ठीक-ठाक हो जहाँ

सब ठीक-ठाक हो जहाँ मेरी वहाँ नहीं है ज़िंदगी, खुशियों से दूर फ़िकाकर मैंने हर दफ़ा ये जाना है। इतना दूर फ़िका जाती हूँ घर का पता क्या याद रहे, बेगानी गलियों को ही फ़िर घर सा मैंने माना है। ज़रा सांझ जो हुई मैं फ़िर वही बेगानी गलियाँ ढूँढूं, कहाँ किसी भी गली ने…

बरसों बीते जाग रही हूँ

बरसों बीत गए यूँही मैं जाग रही हूँ, जाग रही हूँ मीलों दूर निकल आई मैं भाग रही हूँ, भाग रही हूँ वक़्त ठहरते देखा मैंने बरसों तक एक लम्हे पर मौसम के शहर बदलते, जीवन काट रही हूँ, काट रही हूँ अबके भारी सावन में सारी कलियाँ मुरझाईं थीं रूखे पत्तों में खिले फूल…